Saturday, July 27, 2024
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बांधती है यह डिफरेंट स्टोरी, बोमन ईरानी हैं पूरे रंग में, फैन्स को आएगा मजा।

इस वेबसीरीज के टाइटल पर मत जाइएगा क्योंकि मामला मासूम नहीं है. यहां बात है एक मौत की, जो किसी की नजर में भले सहज हो लेकिन मरने वाली महिला की बेटी को लगता है कि उसके पिता ने यह हत्या की. सच क्या है, आखिर में पता चलता है.

कृष्ण बिहारी नूर का शेर है, ‘सच घटे या बढ़े तो सच न रहे/झूठ की कोई इंतिहा ही नहीं.’ वेब सीरीज मासूम जब शुरू होती है आप यही महसूस करते हैं क्योंकि पल-पल आपके सामने दिख रही सचाई पर सवाल खड़े होते हैं और वह झूठ के हाथों पराजित होती मालूम पड़ती है. कहानी में एक जगह गुणवंत कपूर (उपासना सिंह) कहती हैं, ‘इंसान की सचाई सीधी नहीं होती. बहुत टेढ़ी होती है. उस पर परत पर परत चढ़ी हुई होती है.’ डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हुई मासूम के बारे में भी आप कह सकते हैं कि इसके रास्ते टेढ़े-मेढ़े हैं. इसमें तमाम परतें हैं. एक सच को जब सब लोग झूठ कहते हैं तो इसका कहानी की नायिका सना (समारा तिजोरी) पर ऐसा असर पड़ता है कि जीवन भर के लिए सबके साथ उसका रिश्ता असमान्य हो जाता है. वह किसी के साथ सहज तालमेल नहीं बैठा पाती.

क्या छुपाया बेटी से

मासूम की कहानी रहस्यों की धुंध में ढंकी है. असली मुद्दा यह है कि पंजाब के एक छोटे-से शहर में रहने वाली गुणवंत कपूर की मौत हो जाती है. वह बरसों से बीमार थी. लकवाग्रस्त जैसी. डॉक्टर पति बलराज कपूर (बोमन ईरानी) उसका इलाज कर रहे थे और उन्होंने बीवी को बचाने में तन-मन-धन सब लगा दिया. बावजूद इसके दिल्ली से आई उनकी छोटी बेटी सना को लगता है कि पिता ने मां की हत्या की है. कहानी में सिलसिलेवार दृश्य भी भी सना के हक में दिखते हैं. मगर डॉ. बलराज कपूर के साथ उनकी बड़ी बेटी (मंजरी फड़नीस) और बेटा (वीर राजवंत सिंह) खड़े हैं. डॉ. बलराज के जीवन में उनके अस्पताल में काम करने वाली रूमी भी है. सना को लगता है कि यहां गड़बड़ियां है और उससे बातें छुपाई जा रही हैं.

कातिलाना हमला

क्या है पूरे मामले की हकीकत, मासूम इसकी पड़ताल करती है. औसतन 30 से 35 मिनिट की छह कड़ियों में पूरी कहानी को समेटा गया है. अंतिम एपिसोड से पहले यह कहानी किसी सिरे को खुलने नहीं देती. यह अलग मुद्दा है कि इसके अंत से आप कितने संतुष्ट होते हैं. बावजूद इसके यह एक नतीजे तक पहुंचती और निराश नहीं करती. पहले एपिसोड से सीरीज बांधती है. आप जानना चाहते हैं कि क्या सना का संदेह सही है? डॉ. बलवंत आखिर कैसे इंसान हैं? पिता-पुत्री के बीच तनाव बरकरार रहता है और कहानी बढ़ने के साथ गहराता है. स्थिति यह भी आती है कि सना पर कातिलाना हमला होता है और उसे लगता है पिता उसे जिंदा देखना नहीं चाहते.

घुमावदार सफर

कहानी की परतें समय के पीछे जाती हैं और वहां कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं. जिनकी वजह से दर्शक आखिर तक सच जानने को ठहरा रहता है. यहां किरदार सहज हैं और इस दुनिया के लगते हैं. उन्हें अच्छे से गढ़ा गया है. पटकथा भी घुमाव-फिराव के साथ दर्शक को लंबी यात्रा पर ले जाती है. इक्का-दुक्का जगह पर थ्रिल का भी हल्का अहसास होता है लेकिन यह केंद्रीय तत्व नहीं है. कहानी को रिश्तों की डोर से सिला-पिरोया गया है. हां, इतना जरूर है कि कहानी की यात्रा में दोहराव बहुत हैं. इसलिए कहीं-कहीं कसाव ढीला पड़ जाता है और दर्शक के धैर्य की परीक्षा होती है. यहां सबसे अच्छी बात है कि बोमन ईरानी, समारा तिजोरी और मंजरी फड़नीस अपने परफॉरमेंस से सब संभाले रहते हैं.

बोमन एकदम बेस्ट

इस सीरीज से बोमन ईरानी ने ओटीटी की दुनिया में कदम रखा है और निश्चित ही वह उम्मीदों पर खरे उतरते हैं. फिल्मों में बोमन जैसे ऐक्टर के लिए अवसर सीमित होते हैं मगर यहां उनकी कमी नहीं है. वह अपने परफॉरमेंस से संवेदनाओं को छूते हैं. पिता के रूप में, डॉक्टर के रूप में और पति के रूप में वह हर तरह से न्याय करते हैं. यह समारा तिजोरी का भी ओटीटी डेब्यू है. वह किरदार के अनुरूप हैं. यद्यपि उनके चेहरे पर हाव-भाव मुश्किल से आते हैं और विविधता नहीं दिखती. इससे पहले वह बॉब विस्वास में भी नजर आई थीं. मंजरी ने अपना रोल अच्छे से निभाया जबकि आखिरी एपिसोड में उपासना सिंह पूरे रंग में हैं. मनुऋषि चड्ढा इससे बेहतर भूमिकाएं पहले कर चुके हैं और यहां उनके किरदार का कोई खास महत्व नजर नहीं आता. कुल मिला कर आपके पास समय और थोड़ा-सा धैर्य है तो मासूम देखने योग्य सीरीज है. लीक से अलग कहानी, जो चालू थ्रिलर न होते हुए भी रोमांचित करती है. बोमन ईरानी के लिए भी इसे देखा जा सकता है.

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