ललितपुर। जिले में आत्महत्याओं का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। बीते एक महीने में 47 लोगों ने अवसाद से ग्रस्त होकर खुद ही मौत का रास्ता चुन लिया। इनमें 41 लोग ऐसे रहे, जिन्होंने फांसी लगाई, तो बाकियों ने कीटनाशक का सेवन और कुएं में कूदकर अपना जीवन समाप्त कर लिया। लगातार बढ़ रहे आत्महत्याओं के आंकड़े को लेकर मनोविशेषज्ञों का कहना है कि छोटी-छोटी बात पर लोग मौत को गले लगा लेते हैं। इसके पीछे का कारण बढ़ता तनाव है।
जिले में आत्महत्याओं का ग्राफ कम नहीं हो रहा है। आलम यह है कि शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में मानसिक तनाव से ग्रस्त होकर या घरेलू कलह के चलते लोग मौत को गले लगा रहे हैं। इनमें कुछ मामले आर्थिक तंगी के चलते हुए। इसके पीछे बेरोजगारी प्रमुख कारण है। 20 अप्रैल से 20 मई तक के आंकड़ों पर गौर करें तो 22 पुरूषों एवं 19 महिलाओं ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। जिनमें महिलाओं के फांसी लगाने के अधिकांश मामले ससुरालियों द्वारा प्रताड़ित करने और घरेलू कलह के कारण सामने आए हैं। जबकि कुछ मामलों में तो परिजन अनजान बने रहे और घटना का कारण भी पता नहीं चल सका।
वहीं पुरुषों में फांसी लगाकर आत्महत्या का कारण घरेलू विवाद, कर्जा और कुछ मामलों में दूसरों के द्वारा परेशान करने की वजह से या आर्थिक तंगी बताई गई है। तीन मामलों में पानी व कुआं में कूूदकर और तीन मामलों में कीटनाशक का सेवन करने से आत्महत्या की। आत्महत्या करने वालों में तीन किशोरियां, 30 वर्ष से कम आयु के 20, 40 वर्ष की आयु के नौ, 50 वर्ष के तीन और 60 वर्ष की आयु के तीन लोग शामिल हैं।
बोले मनोविश्लेषक
बुंदेलखंड में पारिवारिक स्थिति के अनुसार कुछ लोग या तो बहुत गरीब होते हैं या मध्यम वर्गीय होते हैं। जो गरीब किसान होते हैं, वह साहूकारों से कर्जा लेकर अपनी खेती आदि का काम करते हैं। कर्जा चुका देते हैं, तो भी उनकी स्थिति फिर से वैसी ही हो जाती है। उनके सामने आर्थिक तंगी हमेशा बनी रहती है, जिसकी वजह से उनकी घरेलू आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती है। इससे वह मानसिक अवसाद में चले जाते हैं और आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं। यदि अवसाद में जाने के बाद उन्हें कोई समझाने का प्रयास करे तो आत्महत्याओं को रोका जा सकता है। नेहरू महाविद्यालय में दोपहर दो बजे से पांच बजे तक ऐसे लोगों के लिए काउंसलिंग कराई जाती है।
-अवधेश अग्रवाल, मनोविशेषज्ञ और प्राचार्य नेहरू महाविद्यालय
घरेलू विवादों में कोर्ट के बाहर ही मामलों का निस्तारण किए जाने का प्रयास होना चाहिए। इसके लिए मध्यस्थता सबसे अच्छा उपाय होता है। ऐसे ही पुलिस लाइन में प्रोजेक्ट नई किरण चलाया जा रहा है, जहां मनोविश्लेषक, सामाजिक लोग और अधिकारी बैठते हैं, जो घरेलू विवाद के मामलों में मध्यस्थता के माध्यम से सुलह समझौता कराते हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए। इसमें पुलिस, प्रशासन, स्कूल, धर्मगुुरुओं को आगे आकर जागरूकता फैलानी चाहिए। प्रताड़ना से आत्महत्या के मामलों में पुलिस कार्रवाई की जाती है।
-निखिल पाठक, पुलिस अधीक्षक