Saturday, July 27, 2024
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उम्मीद की मशाला: थमे न किसी की जिंदगी रफ्तार….ढलती उम्र में गड्ढे भर रहे मास्साब।

ललितपुर। जिले की सबसे बड़ी समस्या जर्जर सड़कों से किसी की जिंदगी की रफ्तार न थमे इसके लिए ढलती उम्र में एक मास्साब पहले अपने वेतन और अब पेंशन से गड्ढे भर रहे हैं। जहां भी सड़क पर उनको गड्ढे नजर आते हैं, वे अपने हाथ ठेला में मिट्टी भरकर निकल पड़ते हैं। गड्ढों को मिट्टी से पाटकर सड़क को चलने लायक बना देते हैं। उन्होंने लोगों के लिए नासूर बन रहे सड़क के गड्ढों का इलाज किया, इसलिए लोग उन्हें वैद्यजी नाम से बुलाने लगे। ललितपुर के राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त 82 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक रूपनारायन निरंजन उर्फ मास्साब ने नई मिसाल कायम की है।


जिले के ग्राम मिर्चवारा निवासी रूप नारायण निरंजन वर्ष 1967 में शिक्षक पद पर चयनित हुए थे। ब्लॉक बार स्थित प्राथमिक स्कूल में शिक्षक पद पर तैनाती होने के बाद उन्होंने बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि जगाई। करीब तीन साल बाद उनका तबादला ग्राम मिर्चवारा के प्राथमिक विद्यालय में हो गया था। यहां उन्होंने खंडहरनुमा स्कूल को अन्य शिक्षकों व बच्चों से श्रमदान करवाकर ठीक कराया। सन 1976 में यहां से उनका स्थानांतरण ग्राम बजर्रा हो गया। यहां विद्यालय भवन तो जर्जर था। साथ ही सड़क भी नजर नहीं आती थी। उन्होंने गांव वालों को सड़क बनाने के लिए जागरूक किया। एक हाथठेला खरीदकर करीब 200 मीटर सड़क गांव के लोगों के साथ तैयार की। उन्होंने यह सड़क संत विनोबा भावे के लिए समर्पित कर दी थी। इसके बाद जहां-जहां उनकी तैनाती रही, वहां उन्होंने शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं को दुरुस्त करने की पहल की।


साल 2002 में रूपनारायन मास्साब सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद वह बड़ी नहर चौकाबाग के पास अपने मकान पर निवास करने लगे। यहां आकर उन्होंने देखा कि नहर की दोनों ओर की सड़कों की पटरी पर बड़े-बड़े गड्ढे थे। भारी वाहन गुजरने से सड़क की पटरी पर चलने वाले साइकिल सवार, बाइक चालक या राहगीर अनियंत्रित होकर नहर में गिरकर चुटहिल हो जाते थे। यह देखकर उन्होंने अपना हाथ ठेला उठाया और सड़क किनारे पटरी पर मौजूद गड्ढों को भरने के लिए जुट गए। प्रतिदिन वह स्वयं श्रमदान करके गड्ढों को भरने में सुबह से ही जुट जाते। करीब दो माह में नहर के दोनों ओर सड़क की पटरियों के गड्ढे भर गए। इसके बाद उन्होंने बड़ी नहर के अंदर भरी पड़ी गंदगी को भी कई बार साफ किया। सड़कों का इलाज करते देख उन्हें लोग वैद्यजी कहकर बुलाने लगे। अब वे बड़ी सड़कों को तो ठीक नहीं कर पाते, लेकिन आसपास की गलियों में गड्ढे होने पर लोगों के सहयोग से अपना ठेला लेकर उसे दुरुस्त करने पहुंच जाते हैं।
275 रुपये में भोपाल से खरीदा था हाथ ठेला
हाथ ठेला वाले मास्साब के नाम से प्रख्यात हो चुके रूपनारायण निरंजन ने बताया कि वर्ष 1967 में उन्होंने हाथ ठेला भोपाल से मात्र 275 रुपये में खरीदा था। इस हाथ ठेला का प्रयोग उन्होंने बजर्रा में सड़क, मिर्चवारा में स्कूल भवन का निर्माण, बड़ी नहर के दोनों ओर की सड़क किनारे स्थित गड्ढों को भरने और बड़ी नहर में मौजूद गंदगी को साफ करने में किया। आज भी हाथ ठेला मास्साब के घर के बाहर रखा हुआ है।
राष्ट्रपति ने किया सम्मानित
शिक्षक रूपनारायण का तबादला जब गांव बजर्रा से ग्राम मिर्चवारा हुआ तो उन्होंने देखा कि विद्यालय का हाल बदहाल था। उन्होंने गांव के बच्चों को शिक्षा के लिए जागृत करने की मुहिम छेड़ी। वह सुबह से गांव के बच्चों को घर से जगाकर स्कूल ले जाते और उन्हें पठन-पाठन के अलावा श्रमदान करने की सीख देते। बच्चों पर इस सीख का असर भी हुआ और उन्होंने श्रमदान करके स्कूल का कायाकल्प कर दिया। जिसमें उन्होंने अपने वेतन का कुछ अंश भी लगाया। वर्ष 1999 में उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने पर तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायण ने पुरस्कृत किया। आज वह मोहल्ले के बच्चों को बुलाकर पढ़ाते हैं। मास्साब का सपना है कि देश का हर बच्चा शिक्षित बनकर राष्ट्र की सेवा करे और एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका अदा करे।

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