डा. सुशील कुमार सिंह। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जापान यात्रा ऐसे समय में हुई जब दुनिया एक नए तनाव से जूझ रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध के जब तीन महीने पूरे हो रहे हैं तब क्वाड की बैठक को अंजाम भी दिया गया। विदित हो कि साल 2007 से शुरू हुआ क्वाडिलेटरल सिक्योरिटी डायलाग (क्वाड) चार देशों का एक ऐसा समूह है, जो व्यापार और रक्षा साझेदारी को मजबूत करने का एक मंच है। हालांकि यह चीन की दृष्टि में हमेशा खटकता रहा है। इससे चीन के दक्षिण चीन सागर में एकाधिकार को न केवल चोट पहुंचती है, बल्कि विश्व की शक्तियों का एक साथ होना भी वह अपने खिलाफ मानता है। हालांकि क्वाड की अब तक की बैठकों में कोई बड़ा नतीजा शायद ही निकला हो। बावजूद इसके दुनिया के फलक पर इसे बाकायदा देखा जा सकता है। रणनीतिक तौर पर क्वाड के गठन के पीछे जापान की ही पहल थी।
उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत और तकनीकी रूप से दक्ष जापान मिलकर पूरे विश्व में एक अच्छी छाप छोड़ सकते हैं। भारत और जापान के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना अप्रैल 1952 में हुई थी। इस द्विपक्षीय संबंधों का यह 70वां साल है। भारत और जापान 21वीं सदी में वैश्विक साङोदारी की स्थापना करने के लिए आपसी समझ पहले ही दिखा चुके हैं। वह दौर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का था। इंडो-जापान ग्लोबल पार्टनरशिप इन द ट्वेंटी फस्र्ट सेंचुरी इस बात का संकेत था कि जापान भारत के साथ शेष दुनिया से भिन्न राय रखता है।